Saturday, 3 February 2024

बेटी की किस्मत (beti ki kismat )

एक बाप के हिस्से में आता,
वो सारे जहां की खुशियां को,
उसके कदमों में बिछाता,
*      *         *        *

बेटी बाप के गले लगकर रोती हुई
बेटी की किस्मत (beti ki kismat )



बेटी को मुश्किल में देखकर,
एक बाप का दिल भी रोता है,
उसकी रातों की नींद उड़ जाती है, 
अगर बेटी को कुछ भी होता है,
बेटी में बसे हैं उसके प्राण,
बेटी है एक बाप का सम्मान,
माँ के दिल की धड़कन है वो ,
एक बाप की आँखों का तारा है,
वो नंगे पाँव दौडी चली आती है,
माँ-बाप ने जब भी उसे पूकारा है,
बेटी की एक मुस्कान प्यारी,
जिसे देखकर दिनभर की थकान,
मिट जाए हमारी,
रहे सुनहरा बेटी का आज और कल,
बेटी की चिंता सताए एक बाप को हर पल,,
काश एक बाप जादू की छडी घूमाकर,
अपनी बेटी को सब खुशियां दे पाता,
एक बाप के हिस्से में आता,
वो सारे जहां की खुशियां को,
उसके कदमों में बिछाता,
*       *        *         *
मैं अपनी बेटी के हिस्से लिखता,
इस नीले आसमान के चाँद-सितारे,
ग़म के सारे बादल हटाकर,
उसके जीवन में लिखता खुशियों के उजियारे,
हर दिन गुजरे उसका हंसते -मुस्कराते ,
वो जिस घर में भी जाए रानी बनकर रहे,
उसके कदमों में हों हर पल,
महकते फूल बिछाते,
काश मैं अपने हिस्से के सुख सारे,
बेटी के नाम लिख पाता,
चमकता रहे हर पल बेटी का चेहरा,
उसके जीवन में सदा प्यार के बादल बरसाता,
बिन मांगे उसे सब दे पाता,
उसके मांगने से पहले ,
उसकी मोहिनी सूरत को देखकर,
सौ,-बार सोचता हूँ उसको डांटने से पहले,
बारिश की बूंदें भी ना छू पाएं उसको,
मैं बनकर रहूँगा सदा उसका छाता,
एक बाप के हिस्से में आता,
वो सारे जहां की खुशियां को,
उसके कदमों में बिछाता,
*       *         *        *
हर रिश्ते को दिल से निभाए,
माँ-बाप के दिल में बस जाएं,
ना किसी बात से डरी है वो
घर में रहती हैं बनकर एक परी है वो,
सबसे ऊपर है बेटी का सम्मान ,
ईश्वर करे वो ना हो कभी परेशान,
बडा रूलाती है बेटी की यादें,
बेटी के जाने के बाद,
रूठ जाती है जब वो कभी,
हम भी रूठ जाते हैं ,
बेटी को मनाने के बाद,
बचपन से लेकर बुढ़ापे तक,
हर पल करते हैं परवाह उसकी,
माँ-बाप के दिल में रहती है ,
एक अलग ही जगह उसकी,
भूले से भी बेटी का मोह,
दिल से भूलाया नहीं जाता,
काश बेटी की किस्मत लिखने का हक,
एक बाप के हिस्से में आता,
वो सारे जहां की खुशियां को,
उसके कदमों में बिछाता,
*       *        *        *


















































      
ईटपअअ

Thursday, 1 February 2024

स्नेह और सहारा (sneh aur sahara )

मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
*      *       *        *


एक बेटा पिता के साथ साइकिल पर जाते हुए
स्नेह और सहारा (sneh aur sahara )


तुम साथ हुआ करते थे जब तक,
हम सबकी आँखों को भाते थे,
कोई कर नहीं सकता प्यार उनके जैसा,
वो इतना प्यार दिखाते थे,
मीत नहीं कोई तुम जैसा,
प्रीत ना करें कोई तुम जैसी,
ये बोलते थे बार -बार हमे,
दिल में कुछ और मुख पर कुछ और,
जताते थे हर पल झूठा प्यार हमें,
मै सब‌ उन झूठे रिश्ते-नातों को,
सच मानकर जिया करता था,
सब को मिल जाएं ऐसे चाहने वाले,
मैं ये ही दुआ किया करता था,
अपनी आंखों का काजल बना कर रखते थे,
हमारे सब चाहने वाले,
कोई रूठ जाए अगर एक सम्बंधी,
हजारों खड़े होते थे हमारा हाथ थामने वाले,
सब रिश्ते थे कितने प्यारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
*       *        *        *
तुम क्या ग‌ए सब रिश्ते-नाते ,
पानी के जैसे बह ग‌ए,
आंखें चुराने लगे हैं सब,
हम बिल्कुल अकेले रह ग‌ए,
आँखों से आंसू बहने लगते हैं,
जब याद आते हैं वो गुजरे पल,
पिता के साये में थे धनवान हम भी,
बिन पिता के हम हो ग‌ए है निर्बल,
तुम्हारा वो कांदे पर बिठाकर,
सुबह -शाम घूमाना,
काश लौट आए फिर से वो नजारा,
कितना हंसी था वो बचपन हमारा 
रिश्ते-नाते सब सुख-चैन हमारा,
लगते हैं सब ख़्वाब पुराने,
पिता बिन सब शुन्य है ,
कोई माने चाहे ना माने,
पिता के रहते खुशियों का मेला,
हर पल लगता था घर में हमारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
*        *       *        *
बात -बात पर आंखें दिखाने लगे हैं,
हम पर मरने वाले,
गिरगिट के जैसे रंग बदलने लगे हैं सब,
हम को अपना कहने वाले,
क्या होता है पिता का साया,
अब हमें समझ आने लगा है,
पिता होता है बरगद की छाया,
अब समझ आने लगा है,
सब के चेहरे से उतरने लगे हैं,
जो पहने थे दो-दो नक़ाब,
पिता का रूतबा क्या होता है,
पता चलता है जब वक्त हो खराब,
अंधेरी रातों के बाद हमारे जीवन में ,
अब उजाले के रंग छाने लगे हैं,
धीरे धीरे घर में खुशियां,
फिर से आने लगी है,
पिता खड़ा होता है हर पल साथ,
जब सारी दुनिया खिलाफ हो हमारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
वो तोड़कर ले आता था चाँद-सितारे,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
*        *        *        *