स्नेह और सहारा (sneh aur sahara )
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
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स्नेह और सहारा (sneh aur sahara ) |
तुम साथ हुआ करते थे जब तक,
हम सबकी आँखों को भाते थे,
कोई कर नहीं सकता प्यार उनके जैसा,
वो इतना प्यार दिखाते थे,
मीत नहीं कोई तुम जैसा,
प्रीत ना करें कोई तुम जैसी,
ये बोलते थे बार -बार हमे,
दिल में कुछ और मुख पर कुछ और,
जताते थे हर पल झूठा प्यार हमें,
मै सब उन झूठे रिश्ते-नातों को,
सच मानकर जिया करता था,
सब को मिल जाएं ऐसे चाहने वाले,
मैं ये ही दुआ किया करता था,
अपनी आंखों का काजल बना कर रखते थे,
हमारे सब चाहने वाले,
कोई रूठ जाए अगर एक सम्बंधी,
हजारों खड़े होते थे हमारा हाथ थामने वाले,
सब रिश्ते थे कितने प्यारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
* * * *
तुम क्या गए सब रिश्ते-नाते ,
पानी के जैसे बह गए,
आंखें चुराने लगे हैं सब,
हम बिल्कुल अकेले रह गए,
आँखों से आंसू बहने लगते हैं,
जब याद आते हैं वो गुजरे पल,
पिता के साये में थे धनवान हम भी,
बिन पिता के हम हो गए है निर्बल,
तुम्हारा वो कांदे पर बिठाकर,
सुबह -शाम घूमाना,
काश लौट आए फिर से वो नजारा,
कितना हंसी था वो बचपन हमारा
रिश्ते-नाते सब सुख-चैन हमारा,
लगते हैं सब ख़्वाब पुराने,
पिता बिन सब शुन्य है ,
कोई माने चाहे ना माने,
पिता के रहते खुशियों का मेला,
हर पल लगता था घर में हमारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
* * * *
बात -बात पर आंखें दिखाने लगे हैं,
हम पर मरने वाले,
गिरगिट के जैसे रंग बदलने लगे हैं सब,
हम को अपना कहने वाले,
क्या होता है पिता का साया,
अब हमें समझ आने लगा है,
पिता होता है बरगद की छाया,
अब समझ आने लगा है,
सब के चेहरे से उतरने लगे हैं,
जो पहने थे दो-दो नक़ाब,
पिता का रूतबा क्या होता है,
पता चलता है जब वक्त हो खराब,
अंधेरी रातों के बाद हमारे जीवन में ,
अब उजाले के रंग छाने लगे हैं,
धीरे धीरे घर में खुशियां,
फिर से आने लगी है,
पिता खड़ा होता है हर पल साथ,
जब सारी दुनिया खिलाफ हो हमारे,
मैंने जब भी मांगें हैं खेल- खिलोने ,
वो तोड़कर ले आता था चाँद-सितारे,
बिन पिता के सूने लगते हैं,
वो सब ऊँचे महल-चौबारे,
* * * *
creater-राम सैणी
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