जोर अपनी जुबान का (zor apni jubaan ka )
कभी हाथ पकड़ा कभी गोद में उठाया है,
उस माँ को मत दिखाओ,
जिस माँ ने तुम्हे बोलना सिखाया है !
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जोर अपनी जुबान का (zor apni jubaan ka ) |
वो एक माँ ही थी जो समझ लेती थी,
हमारी तोतली ज़ुबान को,
जिस माँ ने सब,
सुख हमारे नाम किए हैं,
हम कैसे भूल जाएं ऐसे इन्सान को,
सब रिश्तों में कोई ना कोई स्वार्थ छुपा है,
निस्वार्थ है माँ की प्रीत यहाँ,
माँ को मानते हैं ईश्वर के बराबर,
माँ के चरणों में सर झुकाने की रीत यहाँ,
बेमिसाल है प्यार उसका,
जिसने हम पर अनमोल प्यार बरसाया है,
कभी हाथ पकड़ा कभी गोद में उठाया है,
उस माँ को मत दिखाओ,
जिस माँ ने तुम्हे बोलना सिखाया है !
* * * *
माँ ईश्वर का एक रुप है प्यारा,
माँ बिन नहीं एक पल गुजारा,
टूट जाता है माँ का दिल,
जब बात करते हो तुम ऊंची ज़ुबान से,
वो हैं नादान जो माँ का ना करें सम्मान,
माँ का सम्मान मेरा ईमान,
जो जीती है देखकर सूरत हमारी,
जो हमारे दिल का हाल जान ले,
पढ़कर आँखें हमारी,
जिसकी आँखों में नहीं है,
माँ के लिए प्यार,
उसके जीवन में रहेगा सदा दुखों अंधकार,
माँ का आँचल है संसार हमारा,
इस संसार में मैंने दो जहां का सुख पाया है,
कभी हाथ पकड़ा कभी गोद में उठाया है,
उस माँ को मत दिखाओ,
जोर अपनी जुबान का,
जिस माँ ने तुम्हे बोलना सिखाया है
* * * * *
ऊँची ज़ुबान माँ का अपमान,
माँ का अपमान ईश्वर का अपमान,
वो मूरत है त्याग की,
सह लेगी हर अपमान,
क्योंकि माँ है महान,
दिल दुखाकर माँ का,
तुम चाहे दिल जीत लो इस पूरे जहां का,
एक पल ना मिलेगा दिल को चैन,
हंसी गायब हो जाएगी होंठों से,
शर्म से झुके रहेंगे तुम्हारे नयन,
हर खुशी होगी कदमों में उसके,
जिसने माँ के कदमों में अपना संसार बसाया है,
कभी हाथ पकड़ा कभी गोद में उठाया है,
उस माँ को मत दिखाओ,
जोर अपनी जुबान का,
जिस माँ ने तुम्हे बोलना सिखाया है !
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