मात-पिता को छोड़कर हम ,
घर नया कहाँ बसाएंगे,
ये बच्चों को कैसे समझाएंगे!
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मात-पिता से नाता तोड़कर,
हम कहाँ ले जाएंगे सब दौलत जोड़कर,
मात-पिता हैं ढाल हमारी,
ये हमारे सरदर्द नहीं,
दिल धड़कता है हमारे दिल में उनका,
उन जैसा कोई सच्चा हमदर्द नहीं
भूलकर दुख-दर्द उनके,
हम नए ज़माने के हो गए,
जब से छोड़ा है दामन उनका,
हम मोहताज दाने -दाने को हो गए,
जब से हो गए हम मात-पिता से अनजान,
रखना छोड़ दिया है जबसे हमने उनका ध्यान,
दिल रहने लगा बेचैन हमारा,
इस बेचैन दिल में सुकून कहाँ से लाएंगे,
ये बच्चों को कैसे समझाएंगे।
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मात-पिता के बिन ऐसे लगता है,
जैसे बिना नींव के हो घर हमारा,
उम्मीद थी जिनकी हम आख़री,
उनको ही छोड़ दिया बे-सहारा,
मात-पिता को दुख देकर,
आज तक कौन सुखी हो पाया है,
जिसने रखा इन फूलों को,
अपने घर के बगीचे में सजाकर,
समझो उसने इस जन्म में पूण्य कर्मों को कमाया है,
जो भी फूल टूटा है डाली से,
वो मिलकर मिट्टी में मिट्टी हो गया,
जिसने पूजा है मात -पिता को ,
वो अपने बुरे कर्म सब धो गया ,
इन रब के फरिश्ते के राहों में,
फूल बोना या शूल बोना,
वो तुम्हारा कर्म है,
पर मात-पिता का हाथ थामकर,
रखना भी तुम्हारा धर्म है ,
छोड़ दिया जो उनको अकेला,
फिर उनका साथ कौन निभाएगा,
मात-पिता है रब जैसे,
ये बच्चों को कैसे समझाएंगे।
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जिस माँ का दूध बहता है हमारी,
रगों में खून बनकर,
हमें रहना है उनके दिल का सकून बनकर,
जिन्होंने अपनी सारी खुशियों को,
हम पर एक पल में वार दिया,
करके मेहनत दिन-रात
जीवन हमारा संवार दिया,
जो देखकर हमारे चेहरे की बहार,
मस्ती में झूम जाएं,
जो लेकर अपनी बांहों में माथा हमारा चूम जाएं,
कैसे भूल जाएं हम उनका प्यार,
जो हमें अपने आँचल में छुपा लेते हैं बार-बार,
सर -आँखों पर रखेंगे आज से मात-पिता का आदेश,
देंगे हम सबको अब ये ही सन्देश,
उन बिन नहीं रहेगा घर खाली हमारा,
उनके बिन रहना अब नहीं है गंवारा
हाथ थामकर मात-पिता का अब हम,
उनके कदम से कदम मिलाएंगे,
मात-पिता है रब जैसे,
अब बच्चों को ये ही समझाएंगे।
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