अलगाव की दास्तान ( algaav ki dastan)
माँ-बाप को ही हर बार,
क्यों परखा जाता है,
ना जाने कैसा दौर आ गया है,
माँ-बाप को भी आजकल,
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अलगाव की दास्तान ( algaav ki dastan |
दो बेटों का बाप हूँ मै,
अपनी मर्ज़ी का मालिक आप हूँ मै,
ईश्वर से अब कोई शिकवे ना कोई गिले हैं,
जब से मेरे आंगन में दो फूल खिले हैं,
मुझ जैसा खुश-किस्मत,
शायद होगा कोई इन्सान,
जिस के ऊपर ईश्वर रहता है हमेशा मेहरबान,
हमारे बुढ़ापे के सुख -दुख,
साथी बनकर रहेंगे वो दोनों,
अपने माँ-बाप को बोझ ना कहेंगे वो दोनों,
जिनको समझा है अपना सहारा,
वो ना करेंगे कभी अपने माँ-बाप से किनारा,
बच्चों के चेहरे पर मुस्कान के रंग देखकर,
माँ-बाप के चेहरे पर एक,
अलग ही नशा छा जाता है,
माँ-बाप को ही हर बार,
क्यों परखा जाता है,
ना जाने कैसा दौर आ गया है,
माँ-बाप को भी आजकल,
* * * * *
मैंने भी अपने आंचल में,
उन दोनों को छिपाया है,
मैंने भी एक माँ का फर्ज,
बड़े अच्छे से निभाया है,
वो दोनों मेरे ही प्यार की छाँव में,
अब तक हैं पले,
उन दोनों ने गुजारा है बचपन अपना,
मेरी ममता के तले,
दूध पिलाया है जिनको,
मैंने अपने सीने से लगाकर,
मुझको रखते थे वे दोनो,
रात-रात भर जगाकर,
माँ-बाप की सेवा करने का,
जब भी मौक़ा आएगा,
उन दोनों में से सेवा का मौका,
अपने हाथों से कोई ना गंवाएगा,
उन दोनों का प्यारा चेहरा एक पल में,
मेरे मन में समा जाता है,
माँ-बाप को ही हर बार,
क्यों परखा जाता है,
ना जाने कैसा दौर आ गया है,
माँ-बाप को भी आजकल,
अलग-अलग रखा जाता है,
* * * * *
वाह!रे ईश्वर, दोनों बेटों ने,
क्या खूब फर्ज निभाया है,
एक बेटे ने थामा है बाप का हाथ,
दुजे ने माँ को अपनाया है,
हर पल हमने साथ गुजारा,
अब ये दिन क्यों दिखाया है,
कोई बताएगा क्या मुझे,
क्या है बेटों की लाचारी,
क्यों नहीं उठा सकते वो,
अपने माँ-बाप की जिम्मेदारी,
अपना सुख -दुख हम किस के संग बांटे,
बहु -बेटा हमको बात -बात पर डांटें
उम्र के इस पड़ाव पर,
क्यों माँ-बाप को तड़फाया है,
क्यों एक दुजे को ,
नज़रों से ओझल कराया है,
सारे जहां का प्यार
एक माँ के आंचल में समा जाता है,
माँ-बाप को ही हर बार,
क्यों परखा जाता है,
ना जाने कैसा दौर आ गया है,
माँ-बाप को भी आजकल,
अलग-अलग रखा जाता है,
* * * * *
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