माँ के प्यार की कहानी (maa ke pyar ki kahani )
अपने सर लेकर खुश हो जाती है माँ,
मेरे सर की सब बलाएं,
कभी अपने लिए भी जी लिया करो,
* * * *
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माँ के प्यार की कहानी (maa ke pyar ki kahani ) |
बच्चों के लिए जीते-जीते माँ,
खुद अपने लिए जीना भूल जाए,
बच्चों को ना पहुँचे कोई दर्द जीवन में,
इसलिए माँ खुद के ज़ख्म सीना भूल जाए,
बच्चों की कामयाबी को समझे अपना धर्म,
जीवन में फूल मिलेगें या कांटे वो है मेरा कर्म,
अपने हिस्से का पहला निवाला डाले ,
बच्चों के मुख में,
माँ अपना सुख ढूंढती है बच्चों के सुख में
उनका जीवन संवारना,उनको प्यार से निहारना,
घर की जिम्मेदारी उठाने के साथ,
बच्चों को गोद में बैठाकर दूलारना,
करते-करते ये हर रोज के काम,
माँ की जिंदगी गुज़र जाती है तमाम,
सबको रखती है माँ अपने आँचल में छूपाकर,
छूने ना पाएं उनको कभी गर्म हवाएं,
अपने सर लेकर खुश हो जाती है माँ,
मेरे सर की सब बलाएं,
कभी अपने लिए भी जी लिया करो,
* * * *
माँ के हिस्से में आया है,
त्याग और बलिदान का अधिकार,
माँ करती है बच्चों पर,
बिन भेदभाव के लाखों उपकार,
एक हाथ से खाए माँ खाना,
दूजे हाथ से दूध पिलाए,
माँ तुमको माने अपना सच्चा हमदर्द,
तेरी कोख के जाये,
रंग आँखों का लाल देखकर,
दिल की नब्ज पहचाने,
क्या हलचल है दिल के अन्दर,
माँ बंद आँखों से भी जाने,
आँखों में कभी आंसू ना आने दें,
गम के बादल कभी हम पर छाने ना दे,
ना कभी बुरा बोलकर,ना तोलकर,
माँ निश्छल, निस्वार्थ सब पर प्यार लुटाए,
अपने सर लेकर खुश हो जाती है माँ,
मेरे सर की सब बलाएं,
कभी अपने लिए भी जी लिया करो,
ये माँ को कौन समझाए,
* * * *
माँ तेरी महानता के किस्से,
हर युग में गाए जाएंगे,
अपने सर को हमेशा माँ और ईश्वर के,
चरणों में ही झूकाएंगे,
जिन हाथों को सर पर रखकर हमारे,
माँ तुम देती हो बेसुमार दुआएं,
उन हाथों को रखुंगा हमेशा थामकर,
जिन हाथों की ऊंगली पकड़कर,
माँ तूं हमें चलना सिखाए,
तुम हो दीपक की लौ के जैसे,
जहाँ जाए उजाला फैलाएं,
माँ तुम्हारे पैर पड़े जिस घर में,
वो घर पावन हो जाएं,
पत्थर के मकानों को माँ,तूं ही घर बनाए,
अपनी प्यारी मुस्कान से,
पूरे घर को महकाए,
माँ को रखिए सर का ताज बनाकर,
माँ को रखिए अपना हमराज़ बनाकर,
उसके राज में हम सबने,
अपने पंख है फैलाए
अपने सर लेकर खुश हो जाती है माँ,
मेरे सर की सब बलाएं,
कभी अपने लिए भी जी लिया करो,
ये माँ को कौन समझाए,
* * * *
creater-राम सैणी
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