जन्नत के द्वार (jannat ke dwar )
पाँव हैं माँ के जन्नत का द्वार,
शहर में मेरा दिल नहीं लगता,
मैं माँ से मिलने अपने गाँव जा रहा हूँ।
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जन्नत के द्वार (jannat ke dwar ) |
मैं छोड़कर घर -बार एक दिन गाँव से शहर आया था,
छोड़कर पीछे माँ को शहर कमाने आया था,
धीरे -धीरे करके मैंने दौलत-शौहरत कमाई है,
इस दौलत को कमाने के लिए ,
मैंने हर रिश्ते से दूरी बनाई है,
दौलत और परिवार का साथ,
सबको एक साथ नहीं मिलता,
दिल का सकून और भाग्य का साथ,
सबको एक साथ नहीं मिलता,
रिश्ते निभाना भूल गए,
हम दौलत कमाते -कमाते,
माँ के आँचल की आती है याद बहुत,
ये उसकी दुआओं का ही असर है,
मैं दिन -रात कमा रहा हूँ,
पाँव हैं माँ के जन्नत का द्वार,
शहर में मेरा दिल नहीं लगता,
मैं माँ से मिलने अपने गाँव जा रहा हूँ।
* * * * *
माँ सर पर हाथ रख कर देती है जो सहारा,
दिल में जोश दोगुना हो जाता है हमारा ,
जो बुझने ना दे कभी मेरी उम्मीदों का दीया,
जैसा फ़िक्र करती हैं माँ,
कोई और ना करें उसके सिवा,
माँ है मेरी अदृश्य ताकत,
मैं खुश हो जाता हूँ सुनकर ,
उसके कदमों की आहट,
माँ से हैं सब खुशियां, वो है गरूर मेरा,
उसकी दुआओं से एक दिन,
चमकेगा नाम ज़रूर मेरा,
माँ के आँचल में छुपाऊं मैं सर अपना,
आज भी उसके आँचल की छाँव पा रहा हूँ,
पाँव हैं माँ के जन्नत का द्वार,
मैं माँ के पाँव छूने जा रहा हूँ,
शहर में मेरा दिल नहीं लगता,
मैं माँ से मिलने अपने गाँव जा रहा हूँ।
* * * * *
माँ हौंसला दे मुझे,आगे बढ़ने के लिए,
बोझ मेरे मन पर कोई रहने ना दे,
वो बनकर मेरी ताकत खड जाती है,
महल मेरी उम्मीदों का कभी ढहने ना दे,
हर सुबह करता हूँ मैं दर्शन,
उस प्यारे से चेहरे के,
माँ कभी कम ना हों,
मुस्कराहट के रंग तुम्हारे चेहरे के,
माँ के पास बैठकर बिताए दो-चार लम्हे,
खुशियों से भर देते हैं हमें,
तनाव में होते हैं जब हम,
सर पर हाथ रख कर माँ,
तनाव कर देती है कम,
मैं माँ के नाम से ही अपनी,
पहचान बना रहा हूँ,
पाँव हैं माँ के जन्नत का द्वार,
मैं माँ के पाँव छूने जा रहा हूँ,
शहर में मेरा दिल नहीं लगता,
मैं माँ से मिलने अपने गाँव जा रहा हूँ।
* * * * *
creater-राम सैणी
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