जीवन के रंग (jeevan ke rang )
मात-पिता और घर की छत,
सारी उम्र करें रखवाली,
आखिर में बोझ कहलाएं।
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जीवन के रंग (jeevan ke rang ) |
मात-पिता के जैसे घर की छत भी करे रखवाली,
घर की छत आँधी सहे तुफ़ान सहे,
और तपती धूप की मार वो खाएं ,
खुद सह लेगी मार मौसम की पर,
छत के नीचे रहने वालों को,
मौसम की मार से बचाए,
गर्मी की सहती मार वो,
पर सबको गर्मी से बचाए हर बार वो,
सर्दी को सहकर खुद सीने पर,
छत के नीचे रहने वालों को,
वो सर्दी से राहत दिलाए,
मात-पिता के जैसे घर की छत भी,
अपना फर्ज निभाए,
मात-पिता और घर की छत,
दोनों एक -सा जीवन पाएं,
आखिर में बोझ कहलाएं।
* * * *
मात-पिता भी अपना हर पल वार दें बच्चों पर,
जब तक हैं जान में जान,
जीवन अपना वार देते है सारा,
संभाले रखते हैं पूरे घर की कमान,
इन दोनों के बिना लगे अधूरा संसार,
मात-पिता के जैसा मिलता नहीं कंही प्यार,
हर सुख -दुख में थामकर रखते हैं हमारा हाथ,
लड़कर हालातों से सदा,
जीवन हमारा संवारा,
पूरी उम्र गुजार देते हैं ,
समझकर हमको अपना सहारा,
अपने जीवन का हर पल,
किया है नाम हमारे,
मात-पिता हैं हमारे जीवन में,
दो चमकते सितारे,
सितारों के जैसे चमक कर,
घर में रौशनी फैलाएं,
मात-पिता और घर की छत,
दोनों एक -सा जीवन पाएं,
सारी उम्र करें रखवाली,
आखिर में बोझ कहलाएं।
* * * *
घर की छत और मात-पिता का,
आखिर में हाल भी एक जैसा हो जाए,
दोनो की कुर्बानी का मोल ना जाने कोई,
पुरानी छत हो जाए जब तो ,
वो शोर बहूत मचाए,
ना रोके वो आँधी-तुफान,
ना ही बारीश से बचाए,
फिर एक दिन डालकर छत नई,
पुरानी को कचरे का ढेर बताएं
मात-पिता से बच्चे भी एक दिन,
ऐसे ही आँखें चुराएं,
बात-बात पर ताने देकर,
उनके मन को ठेस पहुंचाएं,
इस दुनिया के मेले में,
दोनों बैठकर सोच रहे अकेले में,
जिनके लिए वार दिया जीवन सारा,
अब वो ही हाथ छुडाएं,
मात-पिता और घर की छत,
दोनों एक -सा जीवन पाएं,
सारी उम्र करें रखवाली,
आखिर में बोझ कहलाएं।
* * * *
creater-राम सैणी
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