Thursday, 21 September 2023

दो बार आंसूओं का सफर (Do baar aansuon ka safar )

मात-पिता की आँखों से आंसू
पहली बार जब बेटी जाती है घर पराए,
दुसरी बार जब बेटा अपने फर्ज से आँखें चुराए।
*       *         *           *         *        *


माँ बेटी को चूमती हुई
 दो बार आंसूओं का सफर (Do baar aansuon ka safar )




मात-पिता को छोड़कर बेटी जब जाती है,
बेटी के जाने के बाद मात-पिता को,
उसकी बहुत याद आती है,
यादें उसके बचपन की,
बहुत -कुछ कह जाती हैं,
सर झुकाकर बेटियां,
सब-कुछ सह जाती है,
बेटी का हर काम में हाथ बंटाना,
उसका रुठना और मनाना,
ये ही सब हमें बहुत भाते हैं,
हम पूरी कोशिश करते हैं,
मगर फिर भी आँखों से आंसू छलक जाते हैं,
बेटी है जान हमारी बेटी से जुड़े हैं दिल के तार ,
छलकते हैं दो बार,
पहली बार जब बेटी जाती है घर पराए,
दुसरी बार जब बेटा अपने फर्ज से आँखें चुराए।
*       *        *           *         *        *
मात-पिता का दिल‌ उस वक्त बहुत घबराएं
जब बेटा अपने फर्ज से आँखें चुराए,
जो रहता था कभी आँचल में छुपकर,
वो ही अब बात- बात पर आँखें दिखाएं,
उम्मीद की डोर धीरे -धीरे टूटने लगी है,
शायद किस्मत भी हम से अब रूठने लगी है,
जिसको मानते थे अपनी जिंदगानी,
अब उसे कोई फर्क नहीं पड़ता,
देखकर हमारी आँखों का छलकता पानी,
भुल गया हमारे उपकार,
शायद हम सही से नहीं दे पाए उसको संस्कार,
बुढ़ापा गुजरेगा आराम से,
नहीं थी इस बात की परवाह,
जो देख रखें थे सपने,
सब हो ग‌ए स्वाह,
फीके हो गए सब रिश्ते -नाते ,
फीका हो गया हमारा प्यार ,
मात-पिता की आँखों से आंसू
छलकते हैं दो बार,
पहली बार जब बेटी जाती है घर पराए,
दुसरी बार जब बेटा अपने फर्ज से आँखें चुराए।
*         *         *         *           *
बेटी हमारी आज भी हम पर जान वार दे,
बिगड़े हमारे सब काम संवार दे,
एक बेटी है जो दो घरों की जिम्मेदारी निभाए,
दुसरा बेटा है जिसकी नज़रों में,
हम हो गए पराए,
इस न‌ए ज़माने की हवा में अब वो खो गया है,
राम जाने क्यों इतना निर्मोही हो गया है,
जिसके कदमों के नीचे रखते थे हम हाथ कभी,
क्यों हमारा नहीं भाता है उसको साथ अभी,
जिसे बोलते थे धन पराया 
वो आज भी अपनी लगती है,
जिसे समझते थे दिल का टुकड़ा,
वो दिल टुकड़े -टुकडे कर गया,
जहाँ भी रहे वो खुश रहे ,
ये ही है मात -पिता के दिल की पुकार ,
मात-पिता की आँखों से आंसू
छलकते हैं दो बार,
पहली बार जब बेटी जाती है घर पराए,
दुसरी बार जब बेटा अपने फर्ज से आँखें चुराए।
*        *        *         *          *         *












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