माँ का पेट पालना (maa ka pet paalna )
जागकर रात सारी ,
चार बेटों के महलों में एक ,
माँ का पेट पालना है भारी।
माँ को भी अब ये होने लगा है विश्वास,
चारों बेटों में कोई नहीं रखना चाहता है पास,
जिन बेटो पर फक्र था कभी माँ को,
आज उन्हीं बेटों ने बना डाला माँ का उपहास,
जिनको पाला था अपने जिगर के टुकड़े मानकर,
आज उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता,
देखकर मेरा चेहरा उदास,
अपनी टूटी झोपड़ी में मैंने,
हर ग़म से बचाकर रखा चारों को,
उनकी झोली में डाल दिया मैंने चांद -सितारों को,
हालात चाहे जैसे भी रहे हों हमारे,
मैंने कभी उफ़ ना करने दिया इन बेचारों को,
हंसना क्या है मैं जैसे भूल गई हूँ,
परवरिश करते -करते इन चारों की,
मेरी उम्र गुजर गई सारी,
चार बेटों का पेट पाल लेती है माँ,
जागकर रात सारी ,
शायद किस्मत से मिलते हैं,
जीवन में सुख सारे,
बेटे बनेंगे सहारा एक दिन,
ये ही सोचकर कट जाएंगे,
बाकी बचे दिन हमारे,
मुख देखकर जिनका मिलता था दिल को सकून,
जिनका जीवन संवारना था मेरा जूनून,
सौ-बार सोचते हैं आजकल बेटे,
एक माँ का पेट पालने के लिए,
क्यों भूल जाते हैं त्याग उसका,
जो हर वक्त तैयार रहती है,
बेटों का गम टालने के लिए,
बेटे भूल सकते माँ को माँ कैसे भूल जाएं,
माँ निभाएगी हर फर्ज अपना,
बेटे निभाए या ना निभाए ,
शायद एक दिन रंग लाएगी ये मेहनत हमारी,
चार बेटों का पेट पाल लेती है माँ,
जागकर रात सारी ,
चार बेटों के महलों में एक ,
माँ का पेट पालना है भारी।
* * * *
creater-राम सैणी
* * * *
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माँ का पेट पालना (maa ka pet paalna ) |
दुखती रग माँ की जान पाए ना कोई,
फुर्सत नहीं है पास किसी के ,
ये जानने के लिए की माँ की आँखें क्यों है रोई,
अपनी -अपनी दुनिया में सब मस्त हो गए
सब हो गए अपने परिवार के रखवाले,
देख रहे सब एक -दुजे को,
कौन माँ का पेट पाले,
झूका है सर चारों का,
कौन माँ से आँखें मिलाएं,
हिम्मत नहीं है किसी एक में भी,
जो आगे बढ़कर माँ को गले लगाए,
मान लिया है बोझ माँ को,
कौन झेले हर रोज माँ को,
दूर -दूर सब होने लगे हैं माँ को मान बिमारी,
चार बेटों का पेट पाल लेती है माँ,
जागकर रात सारी ,
चार बेटों के महलों में एक ,
* * * *माँ को भी अब ये होने लगा है विश्वास,
चारों बेटों में कोई नहीं रखना चाहता है पास,
जिन बेटो पर फक्र था कभी माँ को,
आज उन्हीं बेटों ने बना डाला माँ का उपहास,
जिनको पाला था अपने जिगर के टुकड़े मानकर,
आज उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता,
देखकर मेरा चेहरा उदास,
अपनी टूटी झोपड़ी में मैंने,
हर ग़म से बचाकर रखा चारों को,
उनकी झोली में डाल दिया मैंने चांद -सितारों को,
हालात चाहे जैसे भी रहे हों हमारे,
मैंने कभी उफ़ ना करने दिया इन बेचारों को,
हंसना क्या है मैं जैसे भूल गई हूँ,
परवरिश करते -करते इन चारों की,
मेरी उम्र गुजर गई सारी,
चार बेटों का पेट पाल लेती है माँ,
जागकर रात सारी ,
चार बेटों के महलों में एक ,
माँ का पेट पालना है भारी।
* * * *शायद किस्मत से मिलते हैं,
जीवन में सुख सारे,
बेटे बनेंगे सहारा एक दिन,
ये ही सोचकर कट जाएंगे,
बाकी बचे दिन हमारे,
मुख देखकर जिनका मिलता था दिल को सकून,
जिनका जीवन संवारना था मेरा जूनून,
सौ-बार सोचते हैं आजकल बेटे,
एक माँ का पेट पालने के लिए,
क्यों भूल जाते हैं त्याग उसका,
जो हर वक्त तैयार रहती है,
बेटों का गम टालने के लिए,
बेटे भूल सकते माँ को माँ कैसे भूल जाएं,
माँ निभाएगी हर फर्ज अपना,
बेटे निभाए या ना निभाए ,
शायद एक दिन रंग लाएगी ये मेहनत हमारी,
चार बेटों का पेट पाल लेती है माँ,
जागकर रात सारी ,
चार बेटों के महलों में एक ,
माँ का पेट पालना है भारी।
* * * *
creater-राम सैणी
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