Thursday, 28 September 2023

मात-पिता का दुख (maat pita ka dukh)

जब से बेटा पढ़-लिखकर मशहूर हो  गया,
हम देखते रह गए चेहरा उसका,
*       *         *         *       *        *
एक माँ अपने बेटे को चूमती हुई
मात-पिता का दुख (maat pita ka dukh)



सब इच्छाएं की है परी उसकी,
अपना मन मारकर,
पता नहीं था मात-पिता को,
यूं रख देगा एक पल में,
अपने दिल से उतार कर,
हर पल रखा है उसको फूलों की छाँव में,
ईश्वर पर एतबार कर,
सोचा था एक दिन बेटा भी करेगा,
मात-पिता का सम्मान,
पढ़-लिखकर वो बन बैठा,
मात-पिता से अनजान,
पढ़-लिखकर क्यों भूल जाते हैं बच्चे,
अपने माता-पिता के एहसान,
वो जैसे बचपन में था नादान,
हमारी नजर में वो आज भी है नादान,
बेटे ने आज मुंह मोड लिया है हम से,
पता नहीं वो किस नशे में चूर हो गया,
जब से बेटा पढ़-लिखकर मशहूर हो  गया,
हम देखते रह गए चेहरा उसका,
*       *        *         *       *        *
मात-पिता के आँचल में ,
जिसने अपना बचपन गुजार दिया,
दिल का टुकड़ा मानकर जिसे,
बचपन से प्यार किया,
उसकी हर एक ग़लती को ,
हंस कर टाल दिया,
मात-पिता का था ये ही अरमान,
वो बन जाए एक अच्छा इन्सान,
हमारी मेहनत का रंग,
अब फीका पड़ने लगा है,
पता नहीं क्यों अब वो हम से,
बात-बात पर लड़ने लगा है,
हमारे साये में रहा वो धनवानों की तरह,
कभी किसी चीज के लिए,
ना तरसने दिया उसको ,
घर में रहता था वो एकदम,
मेहमानों की तरह,
आज भी है हमारे लिए वो एक बच्चा है,
बेशक कद से बड़ा जरूर हो गया,
जब से बेटा पढ़-लिखकर मशहूर हो  गया,
हम देखते रह गए चेहरा उसका,
राम जाने वो मात-पिता से कब दूर हो गया।
*       *         *        *       *         *
कभी जिस आँगन में गुंजती थी,
बचपन में उसकी किलकारियां ,
जिस आँगन में खिलती थी,
उसके प्यार के फूलों की क्यारियां,
जिस घर में थिरकते थे ,
उसके नन्हें -नन्हे पाँव,
जिसे हर पल रहता था,
माँ के सीने से लिपटने का चाव,
आज वो ही मन्दिर के जैसा घर,
बिन उसके लगता है सुनसान,
जैसे बिना चाँद-सितारों के ,
खाली है नीला आसमान,
जीवन की राहों में बेशक,
अकेले पड़ जाएं हम ,
किस्मत से कैसे लड जाएं हम,
याद है हमको वो पल आज भी,
जिस दिन बेटे को पाकर हमें गरूर हो गया,
जब से बेटा पढ़-लिखकर मशहूर हो  गया,
हम देखते रह गए चेहरा उसका,
राम जाने वो मात-पिता से कब दूर हो गया।
*         *       *          *        *      *














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