Saturday, 3 June 2023

छोड़कर माँ का आँचल

मेरा हाथ पकड़ कर चलता था जो,
अब हाथ छुड़ाकर चल दिया,
हमे निर्बल बनाके चला‌ गया वो,
हमने‌ जिसको बल दिया।
*।      *।        *।        *


मां कोशल्या राम जी को पीठ पर उठाती हुई


खाता था जो खाना बैठकर कभी,
मेरी आँचल की छाँव में,
अब नजरें फेर लेता है,
देखकर छाले मेरे पाँव के,
जिसे रखा था आँचल में छुपाकर,
वो खुले आसमान के नीचे हमको,

बैठाकर चल दिया,
मेरा हाथ पकड़ कर चलता था जो,
अब हाथ छुड़ाकर चल दिया।

*।      *।        *।       *।     *
जो बिन बोले समझ लेता था,
मेरे दिल का हाल,
जो खुद से भी ज्यादा रखता मेरा ख्याल,
जिसको पाया था मैंने कंई मन्दिरों की,
चौखट पर सर रगड़कर,
आज एक छोटी सी बात पर ,
चला गया है मुझे से झगड़कर,

जिसकी बहने ना दिया कभी आँखों से पानी,
वो मेरी आँखों से पानी बहाके चल दिया,
मेरा हाथ पकड़ कर चलता था जो,
अब हाथ छुड़ाकर चल दिया।
*।      *।      *।      *।       *
जिसकी राह देख-देखकर ,
सूख गया मेरी आँखों का पानी,
जिसकी हर गलती भुलाकर,
सीने से लगाया,
माफ़ की उसकी हर नादानी,
शायद ये कोई ‌बुरा कर्म है,
हमारे पिछले जन्म का,
जो हमने इस जन्म में चुकाया है ,
इन आँखों का तारा था जो कभी,
आज वो भी हो गया पराया है,
छोड़ा नहीं था जिसे अकेला कभी,
वो हमको बिल्कुल अकेला छोड़ कर चल दिया,
मेरा हाथ पकड़ कर चलता था जो, वो
अब हाथ छुड़ाकर चल दिया।

*      *          *            *
creater-राम सैणी
https://maakavita3.blogspot.com




0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home