आसमान को मैं छूने चली हूँ,
पाँव जमीं पर हैं मेरे,
मैं हिन्द की बेटी हूँ माँ,
मेरे अंदर संस्कार बोलते हैं तेरे,
* * * * *
मैं छूना चाहती हूँ माँ,
बुलंदी इस नीले आसमान की,
मेरे दामन पर कसेंगे तंज़ बहुत,
ये रीत है इस जहान की,
जब तक जीत ना जाऊंगी मैं हार नहीं मानुंगी,
पर्वत के जैसे ऊंचे हौंसले हैं बुलंद मेरे,
हार मान कर पीछे हट जाऊं,
ये माता-पिता को नहीं है पसंद मेरे,
कदम-कदम पर वो साथ खड़े हैं,
आएगा एक दिन खुशियों का सवेरा,
चाहे गमों की कितनी ही रात बड़ी हो,
रस्ते मिलेंगे सुनसान बहुत,
मुझे आगे बढ़ते जाना है,
माँ विश्वास की होगी जीत मेरे,
ठान लिया है मन मे मैने,
एक दिन कुछ कर दिखाना है,
मुझे पता है माता-पिता और पूरे घर की,
जिम्मेदारी सर पर है मेरे,
आसमान को मैं छूने चली हूँ,
पाँव जमीं पर हैं मेरे,
मैं हिन्द की बेटी हूँ माँ,
मेरे अंदर संस्कार बोलते हैं तेरे,
* * * * *
मैं आज के दौर में जीती हूँ,
पर भूली नहीं मै अपने संस्कार,
दिल में बसते हैं माता-पिता मेरे,
वो दोनों है मेरा पहला प्यार,
मैं माँ के नयनों की ज्योती हूँ,
पिता के सर का अभिमान हूँ मैं,
मेरे दिल में तस्वीर है उनकी,
उन दोनों की जान हूँ मैं,
दिल में हो जब दर्द गमों का ,
मेरी आँखें जब भी रोती है,
मुस्करा लेती हूँ माता-पिता की मूरत देखकर,
मैं चाहे कहीं भी होती हूँ,
मेरे माता-पिता ने मुझको बिल्कुल,
बेटों के जैसे पाला है,
मेरे जीवन का हर पल उन्होंने,
अपने प्यार के रंग में रंग डाला है,
उनके दिल में बसी हूँ मैं धड़कन बनकर,
माता-पिता का लहू दौडता जिगर में है मेरे,
आसमान को मैं छूने चली हूँ,
पाँव जमीं पर हैं मेरे,
मैं हिन्द की बेटी हूँ माँ,
मेरे अंदर संस्कार बोलते हैं तेरे,
* * * * *
मैं माँ के दिल पर राज करूं,
पिता की लाडली हूँ ज्यादा,
माँ के संस्कारों का मैं मान करूं,
मैं करती हूँ ये एक वादा,
मैं उड़ने लगी हूँ जब से,
इस खुले आसमान में,
मेरे सपनों में रंग भरने लगे हैं,
सच कहती हूँ ईमान से,
अपने पाँव पर हो जाऊं खडी,
मैं घर की उठाऊं हर जिम्मेदारी,
इतनी मैं हो जाऊं बड़ी,
बेटा बनकर रहूं मैं माँ का,
नाम करूं ऊंचा उनका,
मैं फर्ज निभाऊं अपने सारे,
सीखा है चलना हाथ पकड़कर मैंने जिनका,
मुझे हर पल ख्याल है माता-पिता का,
जो राह देखते घर पर हैं मेरे,
आसमान को मैं छूने चली हूँ,
पाँव जमीं पर हैं मेरे,
मैं हिन्द की बेटी हूँ माँ,
मेरे अंदर संस्कार बोलते हैं तेरे,
* * * * *